"यदि हम महाजनों का अनुसरण करें, अधिकारियों के उदाहरण का अनुसरण करें, तो हमारा जीवन सफल है। और गुरु का अर्थ है कि वह महाजन है या महाजनों का अनुयायी है। इसलिए हमें महाजन प्रक्रिया का चयन करना होगा। हमारी प्रक्रिया के अनुसार, हम ब्रह्म-संप्रदाय का अनुसरण करते हैं। और ब्रह्मा महाजनों में से एक हैं। इसलिए ब्रह्मा की अपनी शिष्य परंपरा है। ब्रह्मा के शिष्य नारद हैं, नारद के शिष्य व्यासदेव हैं, और व्यासदेव के शिष्य शुकदेव गोस्वामी हैं। इस तरह, हम चैतन्य महाप्रभु के पर आते हैं। फिर चैतन्य महाप्रभु के शिष्य, छह गोस्वामी। फिर अन्य, फिर हमारे गुरु महाराज। लेकिन हम एक ही बात कह रहे हैं। महाजनो येन गतः स पंथाः (चै. च. मध्य १७. १८६)। हम कुछ भी निर्माण नहीं कर रहे हैं। वह गुरु-परम्परा प्रणाली है। और अगर हम महाजन की रीति का सख्ती से पालन करते हैं, तो गलती का कोई सवाल ही नहीं है। यह अंधविश्वास नहीं है। वरिष्ठ लोग अनुसरण कर रहे हैं, और हम भी अनुसरण कर रहे हैं। बेशक, किताबें हैं, सब कुछ है। श्रुति-स्मृति-पुराणादि-पंचरात्र-विधि (भक्ति-रसामृत-सिंधु १.२.१०१)। सब कुछ है। इसलिए गलत होने का कोई सवाल ही नहीं है। मार्गदर्शक है, आध्यात्मिक गुरु है। इसलिए कोई कठिनाई नहीं है।"
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