HI/760816 - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"वैराग्य का अभ्यास किया जाना चाहिए, लेकिन भक्ति इतनी मजबूत है, केचित् केवलया भक्त्या, केवल भक्ति से, वासुदेव-परायण। वैराग्य तुरंत आता है। अघं धुन्वन्ति कार्तस्न्येन निहारं इव भास्कर:। यदि वास्तव में कोई शुद्ध भक्त है, तो सब कुछ भौतिक, समाप्त हो गया। वह असली भक्त है। अब मेरे पास कुछ भक्ति है और कुछ भौतिक इच्छा भी है, वह भक्ति नहीं है। वह मर्कट-वैराग्य है। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं भक्ति बंद कर दूंगा। नहीं। आप भक्ति को सिद्धांत तक, नियामक सिद्धांत तक ले जाईये, फिर स्वचालित रूप से वैराग्य आ जाएगा। वैराग्य नहीं आ रहा है, इसका मतलब है कि आप शुद्ध भक्त नहीं हैं। यह मिलावट है। अन्याभिलाषित-शून्यम् (भक्ति-रसामृत-सिन्धु १.१.११)। यही भक्ति है। और चूँकि अन्याभिलाषित-शून्यम् (चै. च. मध्य १९.१६७) नहीं है, इसलिए यह मिलावटी है।"
760816 - बातचीत - बॉम्बे