HI/760818 - श्रील प्रभुपाद हैदराबाद में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"मोक्ष के स्तर पर आए बिना कोई भी भक्ति में प्रवेश नहीं कर सकता। यह एक गलत धारणा है कि भक्ति मोक्ष में मदद करती है। कोई कहता है; यह शास्त्र का मत नहीं है। भक्ति तब शुरू होती है जब व्यक्ति पहले से ही मुक्त हो चुका होता है। मोक्ष। ब्रह्म-भूत: प्रसन्नात्मा (भ.गी. १८.५४)। ब्रह्म के बिना, ब्रह्म की प्राप्ति के बिना, अहम ब्रह्मास्मि, प्रसन्नता नहीं हो सकती, प्रसन्नात्मा। यह संकेत है। प्रसन्नात्मा क्या है? न शोचती न काङ्क्षति। भौतिक रोग यह है कि हर कोई किसी ऐसी चीज के लिए लालायित रहता है जो उसके पास नहीं है। और जब वह चीज खो देता है, तो वह विलाप करता है। ये दो कार्य: शोचति काङ्क्षति। अतः ब्रह्म-भूतः प्रसन्नात्मा, जब कोई वास्तव में आत्म-साक्षात्कार कर लेता है, ब्रह्म-भूतः, न शोचति न काङ्क्षति। यह लक्षण है। तब समः सर्वेषु भूतेषु। तब सभी को समान रूप से देखना संभव है। पंडिताः सम-दर्शिनः (भ.गी. ५.१८)।"
760818 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०७.०६ - हैदराबाद