"या तो आप अपनी गतिविधियों, अपने मन, अपने शब्दों को कृष्ण की सेवा में लगाएं। या तीन में से कम से कम दो, कम से कम एक। तब आपका जीवन सफल है। कृष्ण इतने दयालु हैं कि इस सरल गतिविधि के लिए . . . किसी को भी कृष्ण को समझने या कृष्ण भावनामृत में आगे बढ़ने के लिए बहुत उच्च मानक शिक्षा की आवश्यकता नहीं है। बहुत सरल बात है। मन-मना भव मद-भक्तो मद-याजी माम नमस्कुरु (भ.गी. १८.६५)। यहाँ कृष्ण विग्रह है। आप हर दिन देखते हैं और उनके बारे में सोचते हैं। यह बहुत आसान है। जैसे ही आप विग्रह को देखने के लिए अभ्यस्त हो जाते हैं, छाप आपके मन में होती है। इसलिए आप उनके बारे में सोच सकते हैं। कृष्ण, मन-मना। और चूँकि आप मंदिर में आते हैं और हमेशा कृष्ण और उनके दैनिक कार्यक्रम को देखते हैं, तो आप भक्त बन जाते हैं। मन-मना भव मद-भक्तो। मद-याजी, आप कृष्ण की पूजा करते हैं। जो कुछ भी आपके पास है, थोड़ा-सा पत्रं पुष्पं फलं तोयम् (भ. गी. ९.२६), बस अर्पित करने का प्रयास करें। और अंत में बस आदरपूर्वक दण्डवत अर्पित करें। तब आप सिद्ध हो जायेंगे। आप वापस घर, भगवत धाम जाने के योग्य हो जायेंगे। बहुत सरल बात है।"
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