"अतः जीवन की शारीरिक अवधारणा के इस स्तर पर हम पशु ही रहते हैं। और उस पशु स्तर से उठकर अपनी आध्यात्मिक चेतना के स्तर तक पहुँचना ही मानव जीवन का कार्य है। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। यह वेदांत सूत्र है। यदि हम इस मानव जीवन रूप में ब्रह्म के बारे में जिज्ञासा नहीं करते, जो अनेक जन्मों के बाद प्राप्त होता है . . . बहुनाम सम्भवन्ते। अनेक लाखों वर्ष और लाखों जन्म। तथा देहान्तरं प्राप्तिर (भ.गी. २.१३): हम अपना शरीर बदलते हैं, लेकिन चूँकि हम पशु स्तर पर हैं, हम यह नहीं समझ सकते कि हमें अपना शरीर बदलना है। इसलिए कृष्ण स्वयं आते हैं, क्योंकि हम कृष्ण के अभिन्न अंग हैं। ममैवांशो जीव-भूत:(भ. गी. १५.७)। वे हमारे लिए अधिक चिंतित हैं, क्योंकि हम इस भौतिक संसार में जीवन की शारीरिक अवधारणा के तहत पीड़ित हैं।"
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