HI/760905 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"अतः अनर्थ, यदि तुम सुखी जीवन, शांतिपूर्ण जीवन, प्रगतिशील जीवन चाहते हो, तो तुम्हें इन अनर्थों पर अंकुश लगाना होगा। अनर्थ-निवृत्तिः स्यात्। इन अनर्थों, अवांछित चीजों पर अंकुश लगाए बिना, तुम सुखी नहीं हो सकते। इसलिए यहाँ इसकी अनुशंसा की गई है। अनर्थ-निवृत्तिः स्यात् साक्षात् भक्तिं अधोक्षजे (श्री. भा. ०१.०७.०६ )। जैसे ही तुम भक्त बन जाते हो, सारे अनर्थ तुरंत परास्त हो जाते हैं। जैसे यहाँ, ये यूरोपीय और अमेरिकी, वे अपने जीवन की शुरुआत से ही अनर्थ के आदी हैं। और नवीनतम अनर्थ उनका नशा था, एलएसडी। लेकिन भक्ति-योग द्वारा, क्योंकि उन्होंने भक्ति-योग को अपना लिया है, बहुत आसानी से उन्होंने इन सभी आदतों को छोड़ दिया है। यहाँ तक कि सरकार भी हैरान है।"
760905 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०७.०६ - वृंदावन