"अतः तुम कृष्ण-भक्त बनते हुए भी पाप कर्मों में लिप्त नहीं हो सकते। तब यह बिगड़ जाएगा। तुम्हें बहुत सावधान रहना चाहिए। हमने पाप कर्मों का सार चुना है, संक्षेप में बताया है, ये हैं अवैध यौन संबंध, मांसाहार, नशा और जुआ। यही सार है। यदि तुम स्वयं को इन चार सिद्धांतों से बचा लेते हो, तो तुम पापरहित हो जाते हो। और जब तक तुम पापरहित नहीं हो जाते, तब तक कृष्ण-भक्त होने का प्रश्न ही नहीं उठता। निश्चिंत रहो। येषां त्व अन्त-गतं पापं, जनानां पुण्य-कर्मणां, ते द्वन्द्व-मोह-निर्मुक्ता, भजन्ते मां दृढ-व्रताः (भ. गी. ७.२८)। जब कोई व्यक्ति सभी पापमय गतिविधियों से मुक्त हो जाता है, तब वह कृष्ण भावनामृत में दृढ़तापूर्वक संलग्न हो सकता है।"
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