HI/760909 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हमें कृष्ण के दिव्य गुणों का प्रसार करना है। कृष्णे परम-पुरुषे। यस्याम वै श्रूयमानायाम कृष्णे परम-पुरुषे, भक्तिर उत्पद्यते (श्री. भा. १.७.७) यही जीवन का मिशन है। इसलिए जहां तक ​​संभव हो, समझने का प्रयास करें। जैसा कि कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने सलाह दी है, सिद्धांत बलिया चित्ते न करा आलसा, आलसी मत बनो। हमेशा कृष्ण को समझने का प्रयास करें, सिद्धांत, सिद्धांत से, वैदिक निष्कर्ष से, विचारों के निर्माण से नहीं। सिद्धांत। आलसी मत बनो। यही कविराज गोस्वामी का निर्देश है । सिद्धांत बलिया चित्ते ना करा आलासा, इहा हैते कृष्ण लागे सुदृढ मानसा (चै. च. आदि २. ११७)। यदि आप वैदिक निष्कर्ष के अनुसार अध्ययन करते हैं, तो विचारों, सनक और भावनाओं का निर्माण न करें . . . यदि आप सिद्धांत से गुजरते हैं, तो आप अधिक से अधिक मजबूती से स्थिर हो जाएंगे। इहा हैते कृष्ण लागे सुदृढ मानसा। तभी आपका जीवन सफल है।”
760909 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०७.१० - वृंदावन