"यदि हम इस हरि-संकीर्तन को शुरू कर सकें, और यदि उनमें थोड़ा रूचि है, तो यह सफलता है। यह एक महान कार्यक्रम है। और वह रूचि आएगा-चेतो-दर्पण-मार्जनम् (चै. च. अन्त्य २०.१२)। यदि वह बस थोड़ा गंभीर हो जाता है कि, "मुझे खाना है, मुझे सोना है, मुझे कुछ इन्द्रिय भोग और सुरक्षा चाहिए। इसलिए यदि मुझे गाँव में आसानी से मिल जाता है, तो मैं तीन सौ मील दूर क्यों जाऊं?" बस मनोविज्ञान को ध्यान में रखें। तो यदि कोई भक्त है तो वह सरल जीवन संभव होगा। भक्ति: परेशानानुभावो विरक्तिर अन्यत्र स्यात् (श्री. भा. ११.२.४२)। केवल भक्ति से; अन्यथा नहीं। कृत्रिम साधनों से, शौचालय बनाकर नहीं। केवल भक्ति। यदि उन्हें कृष्ण के प्रति थोड़ी आसक्ति हो जाए, तो ये प्रश्न स्वतः ही हल हो जाएंगे, और वे खुश रहेंगे। निस्संदेह।"
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