HI/760915 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हमें धीर बनना है। तब हमें मृत्यु से डर नहीं लगेगा। जब तक हम धीर नहीं होंगे . . . मनुष्य दो प्रकार के होते हैं: धीर और अधीर। धीर का अर्थ है वह जो अशांति का कारण होने पर भी विचलित नहीं होता। जब अशांति का कोई कारण न हो तो व्यक्ति विचलित नहीं हो सकता। जैसे हम अभी, वर्तमान क्षण में, मृत्यु से नहीं डरते हैं। लेकिन जैसे ही हम पाते हैं कि भूकंप आया है, और हमें डर लगता है कि यह इमारत गिर सकती है, जो अशांति का कारण है, तो हम बहुत अधिक विचलित हो जाते हैं-कभी-कभी चीखने लगते हैं। इसलिए जो विचलित नहीं होता, भले ही अशांति का कारण हो, उसे धीर कहा जाता है। धीरस तत्र न मुह्यति। यह भगवद गीता का कथन है। हमें अधीर से धीर बनना है। लेकिन यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है कि अधीर भी धीर बन सकता है। धीरा. यह इस आंदोलन का लाभ है।"
760915 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०७.१८ - वृंदावन