"परम पुरुषोत्तम भगवान को वह व्यक्ति जान सकता है जिस पर भगवान की थोड़ी सी भी कृपा हो। यह वैदिक संस्करण है। नायम आत्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन (कठोपनिषद १.२.२३)। आत्मा, परम सत्य, को नहीं समझा जा सकता है . . . नायम आत्मा न प्रवचनेन लभ्यः . . . महान वाद-विवादकर्ता बनकर कोई परमेश्वर को समझ सकता है-यह संभव नहीं है। नायम आत्मा प्रवचनेन लभ्यो न बहुना श्रुतेन। न ही कोई बहुत बड़ा विद्वान व्यक्ति या कोई महान वैज्ञानिक या दार्शनिक, न मेधया-इस तरह से हम नहीं समझ सकते। लेकिन जो समर्पित है, वह समझ सकता है।"
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