HI/760920 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"परम पुरुषोत्तम भगवान को वह व्यक्ति जान सकता है जिस पर भगवान की थोड़ी सी भी कृपा हो। यह वैदिक संस्करण है। नायम आत्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन (कठोपनिषद १.२.२३)। आत्मा, परम सत्य, को नहीं समझा जा सकता है . . . नायम आत्मा न प्रवचनेन लभ्यः . . . महान वाद-विवादकर्ता बनकर कोई परमेश्वर को समझ सकता है-यह संभव नहीं है। नायम आत्मा प्रवचनेन लभ्यो न बहुना श्रुतेन। न ही कोई बहुत बड़ा विद्वान व्यक्ति या कोई महान वैज्ञानिक या दार्शनिक, न मेधया-इस तरह से हम नहीं समझ सकते। लेकिन जो समर्पित है, वह समझ सकता है।"
760920 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०७.२३ - वृंदावन