"भगवान विष्णु के पास इतनी उच्च शक्ति है कि वे अपने भक्त के माध्यम से किसी को भी शुद्ध कर सकते हैं, यहाँ तक कि कोई चाण्डाल भी क्यों न हो, और दूसरों की तो बात ही क्या करें। किं पुनर ब्राह्मणाः पुण्य भक्त राजर्षयस तथा (भ.गी. ९.३३)। यदि उनका उद्धार हो सकता है, तो जो ब्राह्मण हैं, उनकी तो बात ही क्या करें। ब्राह्मण का अर्थ है पुण्य। पवित्र गतिविधियों की पृष्ठभूमि के बिना, कोई भी अमीर परिवार में, ब्राह्मण परिवार में जन्म नहीं ले सकता। कोई भी उच्च विद्वान व्यक्ति नहीं बन सकता, कोई भी सुंदर नहीं बन सकता। जन्मैश्वर्य-श्रुत-श्री (श्री. भा. १.८.२६)। वे पुण्य की क्रिया, प्रतिक्रिया हैं। और ठीक विपरीत पाप है। इसलिए हर कोई- पाप या पुण्य का कोई सवाल ही नहीं है-अगर कोई कृष्ण की शरण लेता है, तो माम हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये ऽपि स्युः पाप-योनयः (भ.गी. ९.३२), इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हर कोई कृष्ण भावनामृत की पारलौकिक स्थिति तक ऊपर उठ सकता है। तो यह आंदोलन है। इसका लाभ उठाएँ और अपने जीवन को उन्नत करें, और भौतिक परेशानी को समाप्त करें। दु:खालयम शाश्वतम (भ. गी. ८.१५)।"
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