HI/760929b - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"संसिद्धि। तुम जो भी हो, उसकी परवाह मत करो। या तो तुम संन्यासी हो सकते हो या गृहस्थ हो सकते हो या ब्रह्मचारी या ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य, शूद्र हो सकते हो। कोई बात नहीं। कृष्ण को संतुष्ट करने का प्रयास करो। कृष्ण को प्रसन्न करने का प्रयास करो। तब तुम्हारा जीवन सफल है। अन्यथा, तुम प्रमत्त, पागल हो। नूनं प्रमत्तः कुरुते विकर्म (श्रीभा ५.५.४)। जब तक तुम प्रमत्त रहोगे, तुम ठीक विपरीत कार्य करोगे, और तुम उलझ जाओगे। इसलिए भगवद् गीता में कहा गया है, यज्ञार्थे कर्मणाः अन्यत्र कर्म-बन्धनः (भ.गी. ३.९) यदि तुम कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कार्य नहीं करते हो, तो वह कार्य तुम्हें जन्म और मृत्यु के चक्र में उलझा देगा।"
760929 - प्रवचन श्री.भा. ०१.०७.३६-३७ - वृंदावन