HI/761006 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो एक वैष्णव परेशान है, व्याकुल है, कि कैसे ये दुष्ट भौतिक स्थिति में इतने कष्ट झेल रहे हैं। तो उन्हें कृष्ण भावनामृत कैसे सिखाया जाए, उन्हें कैसे खुश किया जाए, यह वैष्णव की चिंता है। वैष्णव की चिंता, व्यक्तिगत, कोई चिंता नहीं है। वैष्णव इस बात से संतुष्ट नहीं है कि "क्योंकि मुझे कोई समस्या नहीं है, मैं कहीं भी जप कर सकता हूँ और आनंद ले सकता हूँ।" नहीं। फिर भी, वैष्णव जोखिम उठाता है। जैसा कि प्रह्लाद महाराज ने कहा, कि "मैं अकेले वैकुंठ या कहीं भी नहीं जाना चाहता, मेरे प्रभु, जब तक कि मैं इन सभी दुष्टों का उद्धार नहीं कर सकता।" यह वैष्णव है।"
761006 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०७.४७ ४८ - वृंदावन