HI/761008 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यह मंदिर आम आदमी के लिए बनाया गया है। यहाँ तक कि महिला, बच्चा, अगर वह यहाँ रोज़ाना कृष्ण को देखता है, तो उसे उसका प्रभाव मिलता है। वह कृष्ण के बारे में सोच सकता है, मन-मना भव मद-भक्तो (भ. गी. १८.६५)। इसलिए मंदिर वहाँ है। हर किसी को हर दिन, हर सुबह, या जितनी बार संभव हो, आना चाहिए, और कृष्ण का प्रभाव लेना चाहिए और इसे अपने दिल के भीतर रखना चाहिए और कृष्ण के बारे में सोचना चाहिए। मन-मना भव मद-भक्तो मद-याजी माम ... और थोड़ा सा अर्पण करें ... आपको वेदांत दर्शन या यह या वह अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वेदांत का उद्देश्य क्या है? वेदांत का उद्देश्य है वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यं (भ.गी. १५.१५)। आपको कृष्ण को समझना होगा। इसलिए यदि आप केवल कृष्ण के बारे में सोचते हैं, तो आप सबसे बड़े वेदान्ती हैं। सबसे बड़े वेदान्ती। वेदैश च सर्वैर। वेदान्त-विद वेदान्त-कृत च अहम। वे वेदों के संकलनकर्ता हैं। इसलिए कृष्ण ने भगवद्गीता में जो भी निर्देश दिया है, वह सब वेदान्त है। यह सरल निर्देश, मन-मना भव मद-भक्तो, यह वेदान्त है। रसोऽहम् अप्सु कौन्तेय (भ.गी. ७.८)। यह वेदांत है। इसलिए वेदांती बनने का मतलब है कृष्ण को समझना, कृष्ण के निर्देश का पालन करना और अपने जीवन में सफल होना।"
761008 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०७.५१-५२ - वृंदावन