HI/761029 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"लोग अनेक बाह्य-अर्थ, बाह्य इच्छाओं के द्वारा खुश रहने की कोशिश कर रहे हैं। अर्थ, अर्थ का मतलब है वास्तविक हित। और अनर्थ, अनर्थोपशमं साक्षात् भक्तियोगं अधोक्षजे (श्री. भा. १.७. ६)। अर्थ का मतलब है कृष्ण को कैसे संतुष्ट किया जाए। यह अर्थ है। इसे अर्थदम कहा जाता है। अर्थदम। आप इस जीवन में वास्तविक रुचि प्राप्त कर सकते हैं। कौमारा आचरेत प्राज्ञो, धर्मान् भागवतं इहा, दुर्लभं मानुषो जन्म, अध्रुवं अपि अर्थदम (SB 7.6.1श्री. भा. १.७.६)। जीवन का यह मानव रूप, यद्यपि अध्रुवम . . . हर कोई, हम इस शरीर को हमेशा के लिए जारी नहीं रख सकते। यह समाप्त हो जाएगा, देहान्तर-प्राप्ति: (भ.गी. २.१३), एक और शरीर। तो यह सभी जीवों के लिए सामान्य नियम है, चाहे कुत्ते का शरीर हो या सूअर का शरीर या मनुष्य का शरीर। यह नहीं रहेगा; यह टिकेगा नहीं। आपको बदलना होगा। इसलिए इसे अध्रुवम कहा जाता है। लेकिन इस मानव जीवन का विशेष लाभ - प्रह्लाद महाराज कहते हैं - यद्यपि यह अध्रुवम है, यह नहीं रहेगा, लेकिन अर्थदम, आप अपना वास्तविक हित पूरा कर सकते हैं।
761029 - प्रवचन श्री. भा. ०५.०५.०७ - वृंदावन