HI/761103c - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"अतः कृष्ण बहुत प्रसन्न होंगे यदि तुम बस ... कृष्ण कहते हैं ... यहाँ वे कहते हैं कि मल-लोक-कामः। कोई कृष्णलोक या वैकुंठलोक कैसे जा सकता है? बहुत आसान है। बहुत आसान है। कृष्ण स्वयं कहते हैं। यह हमारा बनाया हुआ शब्द नहीं है। कृष्ण कहते हैं, मन-मना भव मद-भक्तो मद-याजी माँ नमस्कुरु (भ.गी. १८.६५)। ये चार काम करो: "हमेशा मेरा चिंतन करो।" यही कृष्ण भावनाभावित है। मनमना भव मद-भक्तः: "मेरे भक्त बनो। मेरी उपासना करो और मुझे प्रणाम करो," और असंशय, "तुम आओगे।" मल-लोक। बहुत अच्छा। बहुत आसान बात है। असंशय। "बिना किसी संदेह के तुम मेरे पास आओगे।" वे कृष्ण के इस प्रस्ताव को क्यों नहीं स्वीकार करते? यह हमारा निर्माण नहीं है। हम दिमाग नहीं धो रहे हैं। यह कृष्ण का वचन है, कि केवल चार चीजें करने से, मनमना भव मद-भक्तो मद-याजी मां नमस्कुरु मां एवैश्यसि असंशय: (भ.गी. १८.६८), बिना किसी संदेह के। यह आवश्यक है। कृष्ण प्रसन्न होंगे।"
761103 - प्रवचन श्री. भा. ०५.०५.१५ - वृंदावन