"कृष्ण, वे अपने मित्र और भक्त को सुरक्षा देने के लिए सब कुछ कर सकते हैं। वे अपना वादा तोड़ भी सकते हैं। इसलिए भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं, कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति (भ.गी. ९.३१)। वे व्यक्तिगत रूप से वादा नहीं करते, क्योंकि वे कभी-कभी अपना वादा तोड़ सकते हैं। वे अर्जुन से पूछ रहे हैं, "तुम वादा करो ताकि तुम्हारा वादा हमेशा पूरा रहे। मैं इसका ध्यान रखूँगा।" यही तत्त्व है। इसलिए यदि हम वास्तव में शांति सूत्र तैयार कर लें, तो सब कुछ संभव है। बस हमें कृष्ण के निर्देश को स्वीकार करना होगा। हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन इसी उद्देश्य के लिए है। हम बस कृष्ण दर्शन को स्वीकार करने का अनुरोध कर रहे हैं। तब पूरा विश्व शांतिपूर्ण हो जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।"
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