HI/761110 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"योग प्रणाली का अभ्यास मन को नियंत्रित करने, इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, क्योंकि हमें पशु स्तर से ब्राह्मण स्तर या आध्यात्मिक स्तर, सत्व-गुण तक विकसित होना है। ततो रजस-तमो-भावः, काम-लोभादयश्च ये, चेता एतैर अनाविद्धाम्, स्थितं सत्ववे प्रसीदति (श्री. भा. १.२.१९)। जब तक हम मूल गुणों, अर्थात् तमोगुण और रजो गुण को नियंत्रित नहीं करते, तब तक आप खुश नहीं हो सकते। यह संभव नहीं है। ततो रजस-तमो-भावः। रजस तमो-भावः का अर्थ है काम और लोभ। जब तक मुझमें कामुक इच्छाएँ हैं और जब तक मुझमें प्राप्त करने की लालच है अधिक से अधिक, अधिक से अधिक, इंद्रियों का अधिक से अधिक आनंद लेना ... यह लोभ है। व्यक्ति को यथासंभव कम से कम संतुष्ट रहना चाहिए। आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च सामान्यं एतत पशुभिर् नराणाम् (हितोपदेश २५)। आहार का अर्थ है भोजन करना। आहार, निद्रा, सोना, भय और इंद्रिय भोग। ये आवश्यक हैं, लेकिन बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि घटाने के लिए।"
761110 - प्रवचन श्री. भा. ०५.०५.२३ - वृंदावन