"यह भक्ति-योग या कोई भी योग ... वास्तविक योग, या प्रथम श्रेणी का योग, भक्ति-योग है। योगिनाम अपि सर्वेषां। कई योगी हैं। उनमें से, भक्त-योगी ... योगिनाम अपि सर्वेषां मद-गता अन्तरात्माना (भ.गी. ६.४७)। भक्त-योगी बने बिना, कोई भी हमेशा कृष्ण के बारे में नहीं सोच सकता। यह संभव नहीं है। सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढ-व्रता: (भ.गी. ९.१४) इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन में हम जो भक्ति-योग सिखा रहे हैं, वह चौबीस घंटे का समर्पण है। सतही तौर पर हम सुबह चार बजे से रात दस बजे तक समर्पण करते हैं, और वह विश्राम का समय होता है। लेकिन जब कोई भक्ति सेवा में आगे बढ़ जाता है, तो सोते समय भी वह कृष्ण की सेवा करता है। इसका मतलब है चौबीस घंटे, सततम्।"
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