"इसलिए यह आवश्यक है कि हम कृष्ण के प्रति अपनी आसक्ति विकसित करें। तब हर क्षण आप कृष्ण को देखेंगे। किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं है, "क्या आप मुझे कृष्ण दिखा सकते हैं? क्या आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं?" आप स्वतः ही देखेंगे। सेवन्मुखे हि जिह्वादौ स्वयं एव स्फूरति आदः (भ. र. सिं. १.२.२३४)। आप कृष्ण से नहीं पूछ सकते, "कृपया यहाँ आइए। मैं आपको देखूंगा," जैसे आप अपने कुत्ते या अपने नौकर से पूछते हैं। कृष्ण किसी के नौकर नहीं हैं। कृष्ण मालिक हैं। वह आपको पसंद कर सकते हैं; वह आपको पसंद नहीं भी कर सकते हैं। नाहम प्रकाशः सर्वस्य योग-माया-समावृतः (भ.गी. ७.२५)। वह सर्वत्र हैं। अण्डान्तर-स्थ-परमाणु चयान . . . (ब्र. स. ५.३५) लेकिन वह अभक्तों को दिखाई नहीं देते। यही है . . . जब तक आप भक्त नहीं हैं, आप नहीं देख सकते। भक्त्या माम अभिजानाति यावान यश चास्मि तत्त्वतः (भ. गी. १८.५५)। अतः वह भक्ति अवश्य होनी चाहिए।"
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