HI/761116 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कोई व्यक्ति बहुत शिक्षित हो सकता है, वैदिक ज्ञान में बहुत अच्छा विद्वान हो सकता है, लेकिन यदि वह भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण को स्वीकार नहीं करता है ... विष्णु और कृष्ण एक ही हैं। विष्णु-तत्त्व। विष्णु-तत्त्व का अर्थ है परम पुरुषोत्तम भगवान का वर्ग। अतः दुराशय ये बहिर-अर्थ-मानिनः (श्री. भा. ७.५.३१)। झूठी आशाओं के कारण वे सफल होने का प्रयास कर रहे हैं। यह संभव नहीं है। दुराशय। ऐसी आशा बेकार की आशा है। यह कभी नहीं होगी ... मोघाशा मोघ-कर्मणाः (भ.गी. ९.१२)। विष्णु को छोड़कर, और केवल वे बहुत उच्च विद्वान बनने की कोशिश कर रहे हैं, मोघ-ज्ञान विचेतसः (भ.गी. ९.१२)। इसलिए वे मोघ हैं, इसका मतलब है कि उनकी आशाएँ कभी सफल नहीं होंगी। वे भले प्रगति कर सकते हैं ।"
761116 - प्रवचन श्री. भा. ०५.०५.२९ - वृंदावन