HI/761118 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"भाग्य का अर्थ है कि जब तक हम प्रकृति के नियमों के अधीन हैं, तब तक ऐसा ही होगा। आप इसे बदल नहीं सकते। यह संभव नहीं है। केवल ... ऐसे नियम को भगवान द्वारा ही बदला जा सकता है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, अहम् त्वं सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि (भ.गी. १८.६६)। आप नहीं। यह संभव नहीं है। कोई भी ऐसा नहीं कर सकता। यदि आपने कुछ गलत, पापपूर्ण किया है, तो आपको भुगतना होगा। कोई बच नहीं सकता। लेकिन वे ऐसा कर सकते हैं।" |
760612 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.४६ - डेट्रॉइट |