"यदि आप कृष्ण की सेवा के विचार में पूरी तरह से लीन हो जाते हैं, इहा। इहा का अर्थ है इस विचार में पूर्ण लीन होना, "मैं कृष्ण की सेवा कैसे करूँ?" कृष्ण की सेवा क्या है? यह कृष्ण द्वारा समझाया गया है, कि वे ... हम उनके व्यावहारिक व्यवहार, आचारण से देख सकते हैं। न केवल उनका आचारण, व्यवहार, बल्कि बाद में, उनके अवतार, चैतन्य महाप्रभु का आचारण, व्यवहार। वह क्या है? कृष्ण भावनामृत का प्रसार करना। कृष्ण भी उसी उद्देश्य से आए थे: कृष्ण भावनामृत का प्रसार करना। या इदं परमं गुह्यं मद-भक्तेश्व अभिधास्यति (भ.गी. १८.६८)। और चैतन्य महाप्रभु भी उसी उद्देश्य से आए थे: कृष्ण भावनामृत का प्रसार करना। इसलिए यदि हम उनके पदचिन्हों का अनुसरण करें और कृष्ण भावनामृत के प्रसार में पूरी तरह से संलग्न हो जाएँ, तो हम तुरंत मुक्त हो जाते हैं।"
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