HI/761122 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"वास्तव में ऐसा नहीं है। प्रत्येक जीव सदैव एक व्यक्ति होता है। भगवद्गीता में इसकी व्याख्या की गई है। कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, "मेरे प्रिय अर्जुन, हम व्यक्ति हैं। अतीत में हम व्यक्ति थे, वर्तमान में हम व्यक्ति हैं, और भविष्य में भी हम व्यक्ति ही बने रहेंगे।" एकता का कोई प्रश्न ही नहीं है। एकता का अर्थ है कृष्ण की सेवा करने के लिए सहमत होना। यही एकता है। कोई अवज्ञा नहीं है। "आप जो भी कहें, मैं स्वीकार करता हूँ" - यही एकता है। अनुकूल्येन कृष्णानुशीलनम् (चै. च. मध्य १९.१६७)। यही एकता है।"
761122 - प्रवचन श्री. भा. ०५.०५.३५ - वृंदावन