"कलियुग में हम यह अपेक्षा नहीं करते कि हर कोई बहुत बड़ा विद्वान हो। यह संभव नहीं है। लेकिन अगर वह जानता है कि शिक्षा का उद्देश्य क्या है, शिक्षा का लक्ष्य क्या है, तो वह भी विद्वान है। जैसे हमारे गौर-किशोर दास बाबाजी महाराज। वह अनपढ़ थे। वह अपने नाम पर हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते थे। लेकिन वह अपने समय के सर्वश्रेष्ठ विद्वान, भक्तिसिद्धांत सरस्वती के आध्यात्मिक गुरु बन गए। तो यह शिक्षा नहीं है, ए-बी-सी-डी। बंगाल में हम कहते हैं अङ्गम। नहीं। शिक्षा का उद्देश्य क्या है? शिक्षा का उद्देश्य स्वयं कृष्ण ने कहा है: वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यं (भ.गी. १५.१५)। अगर कोई कृष्ण को समझता है और कृष्ण के चरणों की शरण लेता है, वह भी सबसे बड़ा विद्वान है।"
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