"आध्यात्मिक शरीर भौतिक आवरण से ढका हुआ है। यह हमारा वास्तविक शरीर नहीं है। लेकिन ईश्वरत्व की सर्वोच्च व्यक्तित्व के मामले में, ऐसा कोई अंतर नहीं है, देहा, देहि। जैसा कि हम में अंतर है... देहिनो 'स्मिन यथा देहा (भ.गी. ०२.१३)। देहा और देहि। देहि का अर्थ है शरीर का स्वामी । जैसे मैं कहता हूं, "यह मेरा शरीर है।" मैं ये नहीं कहता," मैं ही शरीर हूँ।" सभी को यह अनुभव हुआ है। यहां तक कि एक बच्चे को भी, उसे उंगली से इशारा करते हुए पूछें। वह कहेगा, "यह मेरी उंगली है।" कोई भी नहीं कहता," मैं ही उंगली हूं, "क्योंकि शरीर और आत्मा में अंतर है।"
|