HI/761205 - श्रील प्रभुपाद हैदराबाद में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कोई भी व्यक्ति तुरंत समर्पण कर सकता है। इसमें कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो कोई भी उसे बाध्य नहीं कर सकता। अन्यथा, यदि वह चाहे, तो तुरंत समर्पण कर सकता है। और उन्होंने कहा, स्वेच्छा से। कृष्ण जबरदस्ती नहीं करते। यदि वे जबरदस्ती करते, तो वे यह नहीं कहते, "तुम समर्पण करो।" नहीं, यह तुम्हारी इच्छा है। यदि तुम चाहो, तो तुम समर्पण करो। यदि मैं कहता हूँ, "तुम यह करो," तो यह जबरदस्ती नहीं है। यदि तुम चाहो, तो तुम यह कर सकते हो। यह तुम्हारी रुचि है। यथेच्छसि तथा कुरु (भ.गी. १८.६३): "जो तुम्हें अच्छा लगे, तुम वह करो। लेकिन मैं तुम्हें सही निर्देश देता हूँ, कि यदि तुम समर्पण करोगे, तो तुम सुखी रहोगे।" यही सबसे बड़ी सेवा है। यदि तुम लोगों को कृष्ण के प्रति समर्पण करना सिखाओ, तो यही सबसे बड़ी सेवा है। इससे उनकी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी।"
761205 - वार्तालाप - हैदराबाद