HI/761212 - श्रील प्रभुपाद हैदराबाद में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हम आत्मा हैं। यह हमारे अस्तित्व को सुधारने या शुद्ध करने का अवसर है। यदि हम चाहें, तो हम इस मानव जीवन में अपने अस्तित्व को शुद्ध कर सकते हैं। इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का अर्थ है अस्तित्व को शुद्ध करना, और मृत्यु के बाद, त्यक्त्वा देहम् पुनर जन्म नैति (भ.गी. ४.९) यदि आप कृष्ण भावनामृत में पूर्ण हो जाते हैं, तो इसका मतलब है कि आप कृष्ण को समझ गए हैं। जन्म कर्म च मे दिव्यं यो जानाति। बस समझकर और उसके अनुसार कार्य करके, आप अपने अस्तित्व को शुद्ध कर सकते हैं, और अगला जीवन इस शरीर को त्यागने के बाद है। हमें इस शरीर को त्यागना होगा। लेकिन जो लोग अपने अस्तित्व को शुद्ध नहीं कर रहे हैं, वे एक और भौतिक शरीर स्वीकार करेंगे। और जिन्होंने अस्तित्व को शुद्ध कर लिया है, वे वापस घर, भगवत धाम वापस चले जाएंगे।"
761212 - प्रवचन भ. गी. २.१२ - हैदराबाद