"ये (भ.गी. १६.१-३) योग्यताएँ, दैव-संपदा हैं। अभयम्: व्यक्ति को निडर होना चाहिए। कौन निडर बन सकता है? बद्धजीव की योग्यताओं में से एक है भयभीत होना। केवल वह व्यक्ति जो कृष्ण भावनामृत में उन्नत है, वही निडर हो सकता है। और सत्व-संशुद्धि। सत्व-संशुद्धि। हमारा यह सत्व, अस्तित्वगत स्थिति, अशुद्ध है, रोगग्रस्त है। इसलिए हम मरते हैं, फिर से जन्म लेते हैं। असुंति। इसलिए सत्व-संशुद्धि: व्यक्ति को अपने अस्तित्व को शुद्ध करने का प्रयास करना चाहिए। उस उद्देश्य के लिए तपस्या की आवश्यकता है। तपो दिव्यं पुत्रका येन शुद्धयेत सत्त्वम ( श्री. भा. ५.५.१) तपस्या का अर्थ है तपस्या। यदि आप अपनी बीमारी को ठीक करना चाहते हैं, तो आपको कुछ तपस्या, नियम और विनिमय का पालन करना होगा। एक आदमी दस्त से पीड़ित है। अगर उसे जो चाहे खाने की अनुमति दी जाए, तो वह कभी ठीक नहीं होगा। उसे कुछ दिनों तक उपवास करना चाहिए; फिर यह ठीक हो जाएगा। तो यह सत्त्व-संशुद्धि है।"
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