"कृष्ण सबके लिए सुलभ हैं। वे सब कुछ खुलेआम बोल रहे हैं। कोई गुप्त मंत्र नहीं है। सब कुछ वहाँ है। मन-मना भव मद-भक्तो मद-याजी माम् (भ.गी. १८.६५)। यह सबके लिए सुलभ है। कठिनाई कहाँ है? जब तक हम कृष्ण के निर्देश को स्वीकार करने से इनकार नहीं करते, तब तक कोई रहस्य नहीं है। सब कुछ सुलभ है। लेकिन हमारे नेता और विद्वान, वे कृष्ण के निर्देश को वैसे ही लेना पसंद नहीं करते जैसे वे हैं। इसलिए हम आग्रह कर रहे हैं, हम भगवद्गीता को वैसे ही प्रस्तुत कर रहे हैं जैसी वह है, कोई व्याख्या नहीं। वे कहते हैं, "व्याख्या क्यों नहीं?" यही दोष है। हम कहते हैं कोई व्याख्या नहीं। आप कृष्ण को वैसे ही लें जैसे वे हैं, बस इतना ही। तब आपका जीवन सफल है।"
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