"हम भगवान के अंश हैं। यदि हम भगवान की सेवा नहीं कर सकते, तो वह हमारी रोगग्रस्त स्थिति है। वही उदाहरण: यह उंगली मेरे शरीर का अभिन्न अंग है। लेकिन मैं उंगली से कहता हूं, "कृपया यहां आओ, मेरी नासिका के पास।" अगर यह नहीं कर सकती, तो यह रोगग्रस्त है। यह सामान्य स्थिति में नहीं है। इसलिए जो कोई भी पूरे, हिस्से और पूरे की सेवा नहीं करता है, वह रोगग्रस्त है। वह सामान्य स्थिति में नहीं है। जीवेर स्वरूप हया नित्य कृष्णेर दास (चै. च. मध्य २०.१०८-१०९)। इसलिए क्योंकि हम भगवान के साथ इस रिश्ते को भूल गए हैं, खुद को भगवान घोषित कर दिया है, वह रोगग्रस्त स्थिति है। इसलिए भगवान आते हैं और वे आदेश देते हैं, सर्व-धर्मान् परित्यज्य माम एकं शरणम (भ. गी. १८.६६): "मेरे प्रति समर्पित हो जाओ। बकवास मत करो।" यही भगवान है। इसलिए जब हम सहमत होते हैं, तो यही हमारी पूर्णता है। कृत्रिम रूप से भगवान बनना नहीं, बल्कि भगवान की सेवा करने के लिए सहमत होना। यही मुक्ति है।"
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