"भोक्तारम यज्ञ-तपसाम् सर्व-लोक-महेश्वरम् (बी.जी.५.२९)। वह (कृष्ण) भोक्ता हैं; हम आनंदित हैं। हम भोक्ता नहीं हैं। तो यह गलती है। वह हमारी माया है हम नहीं हैं भोक्ता। इसलिए चैतन्य महाप्रभु हमें दिशा देते हैं, जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्ण-दास (चै. च. मध्य २०.१०८-१०९) कृत्रिम रूप से पुरुष या भोक्ता बनने की कोशिश मत करो। बेहतर है की तुम इन्द्रियों की सेवा के बदले दास बनो। यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। हम लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि "कृत्रिम रूप से गुरु बनने की कोशिश मत करो। तुम कभी सफल नहीं होगे। बस कृष्ण के सेवक बनने के लिए सहमत हो जाओ।" सर्व-धर्मान् परित्यज्य माम एकम शरणम (भ. गी. १८.६६). यही आपकी पूर्णता है।"
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