HI/770102 - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आध्यात्मिक शरीर अब भौतिक शरीर से ढका हुआ है। इसलिए कोई भी भौतिक वस्तु, वह अस्तित्व में नहीं रहेगी। इसलिए शरीर समाप्त हो गया है; फिर उसे नया शरीर खोजना होगा। जैसे पोशाक पुरानी हो गई है; यह समाप्त हो गई है-आप दूसरी पोशाक ले लेते हैं। और जब आपको पोशाक, या यह भौतिक शरीर नहीं लेना पड़ता है, और आप अपने आध्यात्मिक शरीर में रहते हैं, तो उसे मुक्ति कहा जाता है। तो यह केवल कृष्ण भावनामृत में ही प्राप्त किया जा सकता है। त्यक्त्वा देहं पुनर जन्म नैति मामेति (भ.गी. ४.९)। मद-याजिनो ऽपि यान्ति माम (भ.गी. ९.२५)। यदि आप कृष्ण भावनामृत का अभ्यास करते हैं तो यह संभव है; अन्यथा नहीं।"
770102 - वार्तालाप बी - बॉम्बे