HI/770108d - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यन् मैथुनादि- गृहमेधि-सुखं हि तुच्छम् (श्री. भा. ७ ९.४५)। इस भौतिक संसार का अर्थ है यह यौन-क्रिया। यही सुख है। और हम कह रहे हैं, "सूअरों की तरह इस सुख का आनंद मत लो।" नायां देहो देह-भाजां नर्लोके कष्टान् कामान अर्हते विद-भुजाम् ये (श्री. भा. ५.५.१)। "सूअर के जीवन में, कुत्ते के जीवन में इस तरह का सुख उपलब्ध है। तुम इस सुख के लिए क्यों व्याकुल हो?" यह हमारा तत्त्य है। वास्तविक सुख? तपो दिव्यम्: कृष्ण प्राप्ति के लिए बस कुछ तपस्या करो।" |
770108 - वार्तालाप जी - बॉम्बे |