HI/770108e - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"पंचसोर्ध्वं वनं व्रजेत। व्रजेत का अर्थ है अनिवार्य। जिस तरह हम बहुत सी चीजों को अनिवार्य मानते हैं, उसी तरह पचासवें वर्ष के बाद पारिवारिक मोह को त्यागना भी अनिवार्य है। इसलिए हम सभी का आह्वान करते हैं अनिवार्य-जिसे कहते हैं-त्याग। बेशक, कोई भी जंगल में नहीं जा सकता। यह संभव नहीं है। उन्हें ब्रह्मचारी के रूप में प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। इसलिए यह हरे कृष्ण भूमि-"आओ।" सभी वानप्रस्थ, वे इस भूमि या वृंदावन, हैदराबाद में केवल भगवद-भजन के लिए रह सकते हैं और किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं।" |
770108 - सुबह की सैर - बॉम्बे |