यह हमारा मुख्य कार्यक्रम है: जितनी संभव हो उतनी पुस्तकें छापें और वितरित करें। यह हमारा मुख्य कार्यक्रम है। अन्य सभी कार्यक्रम गौण हैं। इसलिए इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, सभी लोग मिलकर काम करें। हमारा चैतन्य-चरितामृत अद्वितीय साहित्य है। चैतन्य-चरितामृत के लिए, हम किसी भी आचार्य से ऊपर हैं। चार आचार्य हैं: रामानुजाचार्य, मधवाचार्य, विष्णु स्वामी ... लेकिन हमारे गौड़ीय वैष्णव, चैतन्य महाप्रभु की विरासत, आचार्य, वह अद्वितीय है। अनर्पिता-चरिम चिरात करुणायावतीर्ण कलौ। यहाँ परम पुरुषोत्तम भगवान व्यक्तिगत रूप से शिक्षा दे रहें हैं-आचार्य। अनर्पिता-चरिम चिरात करुणायावतीर्ण कलौ समर्पयितुम उन्नतोज्जवल-रसम। सर्वोच्च उच्चतम आनंद, माधुर्य। राधा-कृष्ण का ये आदान-प्रदान, माधुर्य-रस, चैतन्य महाप्रभु का योगदान है।"
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