"आस्था का मतलब कोई आरक्षण नहीं है। वह क्या है? भजते माम् अनन्य-भाक्। यह है ... अनन्य-भाक्। कोई आरक्षण नहीं। वह है ... साधुर एव। वह साधु है। वह जो कुछ भी करता है, कोई फर्क नहीं पड़ता। भजते माम् अनन्य-भाक् ।साधुर एव स मन्तव्यः अन्या-मानसो (भ. गी. ९.३०)। वह साधु है। महात्मानस तु माम् पार्थ दैवीं प्रकृतिम् आश्रितः, भजन्ति अनन्य-मनसो (भ. गी. ९.१3)। शब्द हैं। दृढ़ निष्ठावान भक्ति की आवश्यकता है। तब तुम परिपूर्ण हो। तब कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या हो, क्या कर रहे हो। चाहे असली बात तय हो। भजते माम अनन्या-भाक्।"
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