"अधिक कार्य करो; अपनी बुद्धि का अधिक उपयोग करो। प्राणैर् अर्थैर धिया वाचा: जीवन से, धन से, बुद्धि से, शब्दों से कृष्ण की सेवा करो। एतावज जन्म-स-फल त्वम। यही जीवन की पूर्णता है। कैसे? एतावज जन्म-सल . . . जन्म-स-फल त्वम देहिनाम इहा देहिषु (श्री. भा. १०.२२.३५)। इहा देहि . . . यह, मानव शरीर में . . . जिन्हें कुत्ते, बिल्लि के रूप में शरीर मिला है, उन्हें शरीर मिला है। लेकिन इहा देहिषु, यह मानव रूप पूर्णता के लिए है। और वह पूर्णता कैसे प्राप्त की जाती है? प्राणैर् अर्थैर धिया वाचा श्रेय आचरणं सदा: "अपने जीवन से, अपने धन से, अपनी बुद्धि से, अपने शब्दों से सेवा करो।" यही सफल जीवन है।"
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