"हराव अभक्तस्य कुतो महद्ग-गुणा (श्री. भा. ५.८.१२)। जो कोई भी भगवान का भक्त नहीं है, वह जीवन भर संकट में रहता है। वह है, उसका कोई मूल्य नहीं है। जब उसकी इतनी निंदा की जाती है, दुष्कृतिन:, मूढ़:, नराधम, मायायापहृत, वह क्या हो सकता है? इतना निंदित। सबसे शरारती, दुष्ट, गधा, मानव जाति में सबसे नीच। और इसलिए उसने इतनी सारी डिग्रियाँ पास कर ली हैं, और मायायापहृत-ज्ञान:-समाप्त हो गया। वह बहुत निंदित है। इसलिए जिस किसी को इस कृष्ण भावनामृत के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, हम उसे कोई पद नहीं देते। कोई भी पद।"
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