"जैसे सूर्य आकाश में है, लेकिन हम देखते हैं कि सुबह वह दिखाई देता है; शाम को वह लुप्त हो जाता है। यह हमारी आँखों का दोष है। वास्तव में सूर्य सदैव वहाँ रहता है। इसी प्रकार वैष्णव, जैसे कृष्ण आते हैं, यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्, इसी प्रकार, एक वैष्णव-जिसका अर्थ है कृष्ण का गोपनीय सेवक-वह भी स्वामी के आदेश से किसी उद्देश्य से आता है। इसलिए उनका जीवन और कृष्ण का जीवन, यह एक जैसा है। भूत, वर्तमान, भविष्य का कोई प्रश्न ही नहीं है। नित्य:। नित्य: शाश्वतो ऽयम, न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २.२०)। अतः तिरोभाव आविर्भाव, वे सूर्य के प्रकट होने और लुप्त होने के समान ही हैं।"
|