HI/770211 - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जब हम ईर्ष्यालु लोगों से दूर रहने की कोशिश करते हैं, तो यह हमारी ईर्ष्या नहीं है। यह सिर्फ़ प्रचार कार्य के लिए परेशानी से बचने के लिए है। ऐसा नहीं है कि हम उनसे घृणा करते हैं। लेकिन क्योंकि ... जब आप साँप से बचते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप साँप से घृणा करते हैं, बल्कि इसलिए कि वह हानिकारक है, हमें सावधानी बरतनी चाहिए। यह भागवतम् का कथन है। और जब आप महा-भागवत अवस्था में होते हैं, पहली कक्षा में, उस समय, परमहंस, किसी के दुश्मन नहीं, किसी के दोस्त नहीं। हर कोई ... जिसका हम अनुकरण नहीं कर सकते। ये नहीं ... उपदेशक, भले ही वह महा-भागवत हों, वे दूसरे चरण में आते हैं। गुरु महाराज की तरह, वह महा-भागवत हैं, लेकिन फिर भी उन्हें दूसरे चरण में आना पड़ा, उन्हें सावधानी बरतनी पड़ी। यह स्वभाविक है।"
770211 - वार्तालाप - मायापुर