HI/770214c - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हमें अधीर नहीं होना चाहिए। यही कृष्ण भावनामृत की पूर्णता है। अधीर का अर्थ है भौतिक संसार में रहना। जब तक हम अधीर हैं, तब तक घर वापस जाने, भगवत धाम वापस जाने का कोई मौका नहीं है। यही तपस्या है- धीर बने रहना। अधीर बनने के कई कारण हैं, लेकिन कारण हमें परेशान नहीं कर सकते-तब धीर। धीरधीर-जन-प्रियौ प्रिय-करौ। हरिदास ठाकुर, धीर की तरह। कारण था, पर्याप्त कारण। वह युवक थे, और एक युवा वेश्या, बहुत सुंदर, आधी रात को आई और उसने अपना शरीर हरिदास ठाकुर को समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा: "हाँ, बहुत अच्छा प्रस्ताव है। आप बैठ जाइए। मुझे अपना जप पूरा करने दीजिए। मैं आनंद लूँगा।" यह धीर है।"
770214 - वार्तालाप सी - मायापुर