"इस शरीर बदलने की प्रक्रिया को बंद करना ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। न कुत्ता, न बिल्ली और न ही कोई देवी-देवता। बस अनंत काल तक कृष्ण की सेवा में हम गोप-बालक, गोपी अथवा कुछ भी बन सकते है, जो हमको अच्छा लगे। जैसे की बछड़ा, गाय, यमुना का पानी या फिर व्रज-भूमि वृन्दावन। सब आध्यात्मिक और पूर्ण आनंदमय है। कोई यमुना का पानी बनकर दिव्य आनंद की अनुभूति कर रहा है तो कोई गाय बनकर, बछड़ा बनकर अथवा कृष्ण के माता-पिता, ग्वाल-बाल, गोपियाँ इत्यादि। परन्तु सबका ध्यान पूरी तरह कृष्ण पर केन्द्रित है। यही वृन्दावन है।"
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