"कृष्ण ये ज्ञान दे रहे है परन्तु आपको श्रवण करना पड़ेगा। जो ज्ञान इस समय हमारे इन्द्रियों की अनुभूति से परे है, उसे अधिकृत व्यक्तियों से हमे सुनना चाहिए। अवन मनसा-गोचर। हमारे मन और बुद्धि से जो परे है, उसे उचित सूत्रों से श्रवण करके ही प्राप्त किया जा सकता है। जैसे कोई व्यक्ति अपने पिता को खुद से पेहचानने में असमर्थ है। उसे उचित व्यक्ति, अर्थात अपनी माँ से सत्य को जानना पढता है। उसी तरह वैदिक ज्ञान का अर्थ है प्रामाणिक सूत्रों से उन चीज़ो के बारे में जानना जो हमारे इन्द्रियों की क्षमता से बाहर है। तद विज्ञानार्थं स गुरुम एवाभिगच्छेत (म उ १.२.१२)। यही भगवद-गीता की शिक्षा है। जब परिस्थितियाँ अत्यंत जटिल हो गई, तब अर्जुन ने कृष्ण के पास आत्मा-समर्पण करते हुए कहा, शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् (भ गी २.७). फिर कृष्ण ने अर्जुन को भगवद-गीता का उपदेश दिया जिसमे प्रथम शिक्षा यही है की तुम ये शरीर नहीं हो।"
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