"भक्ति का सर्वप्रथम अंग है उत्साह। इस लड़के को ही देख लो। वो अपनी सेवा छोड़कर इधर आया ही नहीं क्योंकि उसमे उत्साह है। तो हमे ऐसे लड़के को और प्रोत्साहन देना चाहिए। संपूर्ण भगवद भक्ति का आधार होता है उत्साह। जैसे की, उत्साह के बिना कैसे एक सत्तर वर्ष का वृद्ध व्यक्ति वृन्दावन से इतनी दूर न्यू यॉर्क जा सकता है? उत्साह ही इसका एकमात्र कारण है। इसलिए उत्साह एक महत्वपूर्ण अंग है और हमे सभी भक्तो को आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। उत्साहान्निश्चयाद्धैर्यात्तत्तत्कर्मप्रवर्तनात् (उपदेशामृत ३)।"
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