"चाहे आप नित्य-सिद्ध हो या कृपा-सिद्ध, साधारण नियमो की अवहेलना करना खतरनाक है। ऎसा कभी मत करना। हमे हर अवस्था में नियमो का पालन करते रहना चाहिए। जैसे चैतन्य महाप्रभु तो स्वयं भगवान कृष्ण है परन्तु वे भी गुरु का शरण लेते है। कौन है उनके गुरु? वे तो सबके गुरु है लेकिन उन्होंने ईश्वर पूरी को गुरु के रूप में स्वीकार किया। स्वयं कृष्ण भी सांदीपनि मुनि का शिष्य बन गए ताकि हम लोग यह समझ सके की गुरु के बिना आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना असंभव है। आदौ गुरुवाश्रयं। प्रत्येक व्यक्ति का सबसे पहला कर्तव्य है गुरु का शरण लेना। तद विज्ञानार्थं सा गुरुम एवाभिगच्छेत (म उ १.२.१२)। ऎसा मत सोचो की "मै तो बहुत महान हूँ। मुझे गुरु की कोई आवश्यकता नहीं है। मै गुरु के बिना ही सफलता प्राप्त कर लूंगा।" यह मूर्खता है। गुरु के बिना आध्यात्मिक उन्नति असंभव है। "करना ही होगा"। तद विज्ञानार्थं। तद विज्ञानार्थं का अर्थ है आध्यात्मिक विज्ञान। "गुरु के पास जाना ही होगा"।
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