"एकश चंद्र तमोहन्ति न च ताराः सहस्रशः। "एक चन्द्रमा ही पुरे आसमान को प्रकाशित करने के लिए पर्याप्त है। फिर कोटि-कोटि तारों की क्या ज़रूरत?" आधुनिक शिक्षा ऐसे करोड़ों टिमटिमाती तारों को जन्म दे रही है परन्तु रौशनी प्रदान करने में एक भी सक्षम नहीं । कोई रौशनी नहीं है। लेकिन हमारे वैदिक सभ्यता का नियम है: "सिर्फ एक चन्द्रमा बना दो, बस।" इतना काफी है। इसलिए हम चुनाव में जितने वाले नेताओ की पूजा नहीं करते, बल्कि रामानुजाचार्य और मध्वाचार्य जैसे आचार्यो का आदर करते है। क्या औकाद है इन नेताओ कि? हम ऐसे लोगो कि परवाह नहीं करते। श्वविड्वराहोष्ट्रखरै: संस्तुत: पुरुष: पशु: (भाग २.३.१९)."
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