"भगवान कभी स्त्री-पुरुष सम्भोग का विरोध नहीं करते। किसने कहा ऎसा? भगवान तो कहते है धर्माविरुद्धो कामोऽस्मि : "मैं वह काम हूँ, जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।" वे कभी नहीं कहते की इसे बंद कर दो। अन्यथा गृहस्थ आश्रम की क्या आवश्यकता है? आश्रम उसे कहते है जहा कृष्ण भावनामृत का अनुशीलन किया जाता हो। जैसे ही कोई कहे की यह एक आश्रम है तो हमे समझना होगा की यहाँ भगवान कृष्ण की भक्तिमय सेवा हो रही है। तो चार प्रकार के आश्रम बताये गए है - ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास। अपने जीवन को आश्रम में परिवर्तित करके उस आश्रम के विधि-निषेधों का पालन करिये। फिर सब कुछ ठीक रहेगा। अन्यथा आप प्रकृति के नियमों से बंध जायेंगे।"
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