"यदि भगवान एक है, तो उनको जानना और उनके आदेशों का पालन करना ही धर्म है। भागवत के अनुसार - धर्मं तु साक्षाद्भगवत्प्रणीतं (श्री भाग ६.३.१९). धर्म का अर्थ होता है भगवान द्वारा दिए गए निर्देश अथवा नियम। जैसे कि सरकार द्वारा बनाये गए नियमों को ही कानून माना जाता है। हम घर बैठे-बैठे अपने कानून नहीं बना सकते। यदि सरकार का आदेश है की सड़क पर हमेशा बाएं तरफ चलना है तो वही कानून है। आप उसे बदलकर दाएं तरफ नहीं कर सकते। इसे ही कानून कहते है। अतः भगवान के आदेशों को ही धर्म माना जाता है। जो भगवान को जानता है तथा उनके आदेशों को समझने का प्रयास करता है, वही धार्मिक व्यक्ति कहलाता है। अन्यथा धर्म का कोई मतलब नहीं।"
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